लोकसभा चुनाव के बाद से हुए चुनावों में लगातार सरकार गठन का इतिहास रच रही भाजपा जम्मू-कश्मीर को अपवाद होने देना नहीं चाहती है। इसका स्पष्ट संकेत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी दे दिया। उन्होंने तीन विकल्पों पहला सरकार बनाने का, दूसरा सरकार में शामिल होने और तीसरा सरकार को समर्थन देने का नाम लिया। सवाल-जवाब में कहा कि सभी मुद्दों पर चर्चा हो रही है और किसी नेता के सार्वजनिक बयान से अलग भी राजनीति होती है।
दरअसल प्रदेश में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद सबसे ज्यादा वोट पाने वाली भाजपा इस अवसर को खोना नहीं चाहती। तार्किक आधार यह है कि जम्मू क्षेत्र के जनादेश को नजरअंदाज कर सरकार बनाना वाजिब नहीं होगा। तार्किक नतीजा यह है कि घाटी में सबसे बड़ी पार्टी बनी पीडीपी या घाटी से सीटें जीतने वाले नेशनल कांफ्रेंस को भाजपा के साथ ही सरकार बनाना होगा। पीडीपी और कांग्र्रेस गठबंधन की संभावनाएं बन सकती हैैं लेकिन सज्जाद लोन की पार्टी पहले ही भाजपा के साथ है। स्वतंत्र विधायकों के रूप में जीते अन्य चार भी भाजपा के संपर्क में हैं। ऐसे में उनके लिए 44 का जरूरी आंकड़ा जुटाना बहुत आसान नहीं है। भाजपा इन आंकड़ों के साथ फैसला पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस पर छोडऩा चाहती है। दोनों ही सूरत में भाजपा की कोशिश होगी कि सीएम भाजपा के खाते से बने और सहयोगी दल केंद्र में भी शामिल हो। सूत्रों का मानना है कि जमीनी स्तर पर बहुत काम हो चुका है और अब इन्हें सोचना होगा कि वह केंद्र के साथ चलना चाहता है या नहीं। भाजपा के साथ सरकार गठन पर जम्मू और घाटी दोनों क्षेत्रों के जनादेश का भी पूरा आदर होगा। बुधवार को भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक है। इसमें झारखंड के मुख्यमंत्री तय करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर की रणनीति का भी खाका तैयार होगा। झारखंड में 27-28 तक शपथग्रहण हो सकता है। वहीं जम्मू-कश्मीर में थोड़ा वक्त लग सकता है।
Source: Hindi News and Newspaper
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