Thursday, 28 April 2016

स्पेस साइंस में भारत के बढ़ते कदम, जानें- क्यों खास है IRNSS सीरीज

भारतीय स्पेस रिसर्च आर्गेनाजेशन( ISRO) का गौरवशाली इतिहास है। कामयाबी की कई इबारतों को लिखने के बाद इसरो की किताब में एक और नया अध्याय जुड़ गया। आइआरएनएसएस सीरीज के सातवें और अंतिम नेविगेशनल सेटेलाइट ने अंतरिक्ष में उड़ान भरा। और भारत अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान की कतार में आ खड़ा हुआ। आइआरएनएसएस सीरीज क्या है और ये भारत के लिए क्यों खास है। इस विषय पर हम सिलसिलेवार जानने की कोशिश करेंगे।

भारत और इसकी सीमा से करीब 1500 किमी दूर के इलाकों के बारे में सटीक जानकारी हासिल करने के लिए आइआरएनएसएस 1 श्रृंखला की शुरुआत 2013 में शुरू की गयी। इस नेविगेशनल सेटेलाइट का मकसद था कि अमेरिका की जीपीेएस की तरह भारत की अपनी नौवहन व्यवस्था हो और दूसरे देशों पर निर्भरता कम हो सके।

इसरो अभी तक IRNSS 1A, 1B,1C,1D,1E,1F को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है। इस पूरी सीरीज में 9 उपग्रह हैं जिनमें सात को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया है। जबकि दो उपग्रहों को जमीन पर स्टैंडबाई पोजिशन में रखा गया है।

आइआरएनएसएस 1A को जुलाई 2013 में लॉन्च किया गया। आइआरएनएसएस 1B को अप्रैल 2014 आइआरएनएसएस 1C को अक्टूबर 2015 में लॉन्च किया गया । आइआरएनएसएस 1D का प्रक्षेपण मार्च 2015 में किया गया। जबकि आइआरएनएसएस 1E को जनवरी 2016 आइआरएनएसएस 1F को 10 मार्च 2016 और आइआरएनएसएस 1G को 28 अप्रैल 2016 में प्रक्षेपित किया गया।

प्रत्येक सेटेलाइट की कीमत करीब 150 करोड़ रुपए हैं जबकि प्रक्षेपण यान की कीमत 130 करोड़ रुपए हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए 1000 करोड़ से ज्यादा बजट आवंटित था।

इस सीरीज के पूरे हो जाने के बाद दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता बहुत हद तक कम हो जाएगी। भारतीय नेविगेशनल सेटेलाइट अमेरिका के जीपीएस रूस के ग्लोनॉस, यूरोप के गैलिलीयो और चीन के बीडो के टक्कर का होगा। जहां जीपीएस और ग्लोनॉस पूरी तरह से काम कर रहे हैं। वहीं चीन और जापान के नेविगेशनल सिस्टम क्षेत्रीय स्तर पर जानकारी मुहैया कराते हैं। जबकि यूरोप के गैलिलीयो ने काम करना शुरू नहीं किया है।

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