कहते हैं कि राजनीति और कूटनीति में समय का बहुत ज्यादा महत्व होता है। जो फैसला आप के पक्ष में न हो इसका मतलब ये नहीं है कि आप उम्मीद छोड़ दें। 24 जून को सियोल बैठक में एनएसजी में भारत की दावेदारी पर चीन की चाल कामयाब हुई। लेकिन चीन अब मुश्किलों में है। उसकी मुश्किल के पीछे कई वजह हैं। जिसे क्रमवार जानने को कोशिश करते हैं।
सियोल में चीन के मुख्य वार्ताकार वैन कून ने चीनी शासन को भरोसा दिलाया था कि 48 सदस्यों वाले एनएसजी के एक तिहाई सदस्य चीन का समर्थन करेंगे। लेकिन वैन कून की रणनीति और कूटनीति औंधे मुंह गिर गई। चीन समेत महज चार देशों ने भारत की दावेदारी का विरोध किया। जानकारों का कहना है कि सियोल के परिणाम से भारत को जितनी निराशा हुई हो, उससे कम धक्का चीन को भी नहीं लगा। चीन को यकीन था कि कम से कम 15 देश उसका समर्थन करेंगे।
चीन को ये सब इतना नागवार लगा कि उसने मुख्य वार्ताकार वैन कून की सार्वजनिक तौर फटकार लगा डाली। चीन प्रशासन वैन कून की रणनीति पर सवाल उठाता रहा।
साउथ चीन सागर पर चीन की मुश्किल
साउथ चीन सागर के मुद्दे पर चीनी रणनीतिकार मुश्किल में हैं। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर हेग आरबिट्रेशन से कुछ दिनों में फैसला आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये फैसला चीन के खिलाफ जा सकता है। आरबिट्रेशन कोर्ट फिलीपींस के समर्थन में फैसला सुना सकता है। कोर्ट के फैसले का मतलब ये होगा कि फिलीपींस की हड़पी गयी जमीन को चीन को वापस करना होगा। इस फैसले का इससे भी बड़ा असर ये होगा कि चीन युनाइटेड कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी से बाहर हो सकता है जिसका वो सदस्य है।
भारत के पास है मौका
चीन को इस बात का डर है कि आरबिट्रेशन कोर्ट के फैसले के बाद भारत वही दांव खेल सकता है। जिसे चीन ने सियोल मीटिंग के दौरान किया था। जानकारों का कहना है कि हेग फैसले का हवाला देकर भारत, चीन को अकंलास से बाहर करने का दबाव बना सकता है। भारत को इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने में मुश्किल भी नहीं आएगी। चीन का कहना है कि उसे 60 देशों का समर्थन हासिल है जो ये मानते हैं कि हेग आरबिट्रेशन अवैध है।
पश्चिमी देशों का भी मानना है कि साउश चीन सी के मुद्दे पर चीन को अलग-थलग होने का डर सता रहा है। चीन हेग आरबिट्रेशन के फैसले का इंतजार कर रहा है। हालांकि चीनी रणनीतिकार उनके हित में आड़े आने वाले कानूनों की वैधता पर ही सवाल उठा देते हैं। इसके उलट अगर अवैध कानून उसके हित को साधने में मदद देते हैं, तो चीन उन कानूनों को वैध बताने में गुरेज भी नहीं करता है।
सियोल में चीन के मुख्य वार्ताकार वैन कून ने चीनी शासन को भरोसा दिलाया था कि 48 सदस्यों वाले एनएसजी के एक तिहाई सदस्य चीन का समर्थन करेंगे। लेकिन वैन कून की रणनीति और कूटनीति औंधे मुंह गिर गई। चीन समेत महज चार देशों ने भारत की दावेदारी का विरोध किया। जानकारों का कहना है कि सियोल के परिणाम से भारत को जितनी निराशा हुई हो, उससे कम धक्का चीन को भी नहीं लगा। चीन को यकीन था कि कम से कम 15 देश उसका समर्थन करेंगे।
चीन को ये सब इतना नागवार लगा कि उसने मुख्य वार्ताकार वैन कून की सार्वजनिक तौर फटकार लगा डाली। चीन प्रशासन वैन कून की रणनीति पर सवाल उठाता रहा।
साउथ चीन सागर पर चीन की मुश्किल
साउथ चीन सागर के मुद्दे पर चीनी रणनीतिकार मुश्किल में हैं। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर हेग आरबिट्रेशन से कुछ दिनों में फैसला आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये फैसला चीन के खिलाफ जा सकता है। आरबिट्रेशन कोर्ट फिलीपींस के समर्थन में फैसला सुना सकता है। कोर्ट के फैसले का मतलब ये होगा कि फिलीपींस की हड़पी गयी जमीन को चीन को वापस करना होगा। इस फैसले का इससे भी बड़ा असर ये होगा कि चीन युनाइटेड कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ सी से बाहर हो सकता है जिसका वो सदस्य है।
भारत के पास है मौका
चीन को इस बात का डर है कि आरबिट्रेशन कोर्ट के फैसले के बाद भारत वही दांव खेल सकता है। जिसे चीन ने सियोल मीटिंग के दौरान किया था। जानकारों का कहना है कि हेग फैसले का हवाला देकर भारत, चीन को अकंलास से बाहर करने का दबाव बना सकता है। भारत को इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने में मुश्किल भी नहीं आएगी। चीन का कहना है कि उसे 60 देशों का समर्थन हासिल है जो ये मानते हैं कि हेग आरबिट्रेशन अवैध है।
पश्चिमी देशों का भी मानना है कि साउश चीन सी के मुद्दे पर चीन को अलग-थलग होने का डर सता रहा है। चीन हेग आरबिट्रेशन के फैसले का इंतजार कर रहा है। हालांकि चीनी रणनीतिकार उनके हित में आड़े आने वाले कानूनों की वैधता पर ही सवाल उठा देते हैं। इसके उलट अगर अवैध कानून उसके हित को साधने में मदद देते हैं, तो चीन उन कानूनों को वैध बताने में गुरेज भी नहीं करता है।
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